हँसी के पीछे का दर्द — जब सोच ही किसी का फैसला कर दे” किसी इंसान को जज करना अब हमारे रोज़मर्रा का खेल बन गया है। एक हँसी, एक मुस्कान, किसी से बैठ कर बात कर लेना — इन छोटी-छोटी चीज़ों को हम मतलब और मर्ज़ी से भर देते हैं। और फिर, बिना …
जब मुस्कान भी गुनाह बन जाती है – समाज की सोच और जजमेंट की कड़वी सच्चाई”
