जब मुस्कान भी गुनाह बन जाती है – समाज की सोच और जजमेंट की कड़वी सच्चाई”

हँसी के पीछे का दर्द — जब सोच ही किसी का फैसला कर दे”   किसी इंसान को जज करना अब हमारे रोज़मर्रा का खेल बन गया है। एक हँसी, एक मुस्कान, किसी से बैठ कर बात कर लेना — इन छोटी-छोटी चीज़ों को हम मतलब और मर्ज़ी से भर देते हैं। और फिर, बिना …

कभी-कभी हमें दूसरों की दुनिया भी देखनी चाहिए | जब हम अपनी सोच की दीवारों में क़ैद हो जाते हैं

कभी-कभी लगता है… हम इंसान सच में बहुत स्वार्थी हैं। नियत से नहीं, पर आदत से। हम अपनी ही भावनाओं की इतनी परतों में लिपट जाते हैं कि सामने वाले की आँखों में झांकना भूल जाते हैं। हमें बस अपने दर्द का एहसास होता है, अपनी उलझनों की कहानी सुनाई देती है। पर क्या हमने …